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पैला री टैम इण परम्पराओं रौ गहरौ अर्थ वैतो।
ज्यूं के
1 - उखरड़ी वधावणौ - इण परम्परा में नवी बीनणीं सूं उखरड़ी रौ पूजन करावता और उखरड़ी रे आगे नचावता। इणरौ अर्थ ओ हतो के बीनणीं ने केवता के थूं इण घर में उखरड़ी ज्यूं भारी खंवो वेईजै । कोई भी कुछ कहदे तो इणरे ज्यूं सहन करजै। बात रौ बतंगड़ मती बणाईजै।
2 - थाळियां चुगावणा - ब्याव रे बाद जद बीनणी ससुराल आवे तो थाळिया चुगावा री परम्परा राखीजै । बींदराजौ तलवार सूं थाळिया बीखेरे , बादमें बीन्दणी अर उणौरी जेठानी मिल ने थालियां भेळी करे। थाळिया री आवाज नहीं आवणी चहिजै। इणरौ अर्थ ओ है के घर में कोई छोटी मोटी बात वे तो वा बात घर रे बारे नी जावणी चाहिए । देराणी जेठानी मिल ने घर री बात घर में केवट लेणी है ।
3 - चाक वधावणा - इण परम्परा में कुम्हार रे घरे जायने चाक ने वधावणा अर विनायक लावणौ। अर्थात घर में शुभ कार्य होवण सूं प्रथम पूज्य देवता गणेश री मूरत घरे लावणौ अर जिण चाक माथे घर में काम आवण वाला बर्तन हांडी , तवा, घड़ा बणै उणरौ पूजन करणौ ।
4 -मगनणौ - इण परम्परा में लकड़ी या छाणौं री गाडी ने वधावणा करे । अमूमन इणरौ सुगन नी लिया करे । पण विवाह में इणने वधाय ने लेवो। इणसूं सुगन खराब नहीं वे इण वास्ते इणौरे सागे जालकी री डाली भी राखे ।
5 - जुआ जुई रमणा - इण परम्परा में बींद बींदणी ने जुआ खेलावे । बीटी जो भी जीते , आखिर में बीटी बीनणी रै कन्नै ई रेवे । अर्थात घर में कोई बात री जिद वे जावे तो कोई भी जीते, बात हमेशा धर्म पत्नी री ही राखणी है ।
6 - चंवरी में जुओड़ौ राखणौ - चंवरी में बळदौ री जोड़ी रे खंवो माथे राखण वालो ज्यूड़ौ राखीजै। इण रौ अर्थ ओ है के
बींद ने बींदणी जीवन रूपी गाड़ी ने चलावण वाली एक जोड़ी है जो दोनों साथ साथ मिलने जीवन री गाड़ी ने मर्यादित रूप सूं चलावणी है ।
7 - पडला - वर पक्ष री तरफ़ सूं शुकून रै तौर माथे वधू पक्ष रे घरे जो शुभ सामग्री लेजाईजै उणनै पडलो कैवै । पडलो री परम्परा न्यारी न्यारी ठौड़ न्यारी है । कठैई तो सामेळा रै टैम ही पड़लो ले जावे और कठैई फेरा रै बाद दूजे दिन पड़ला ले जावे । पडला में यूं तो गुड़ री भेली, मेहंदी , गैंहू रौ दळियौ, पतासा, वरी रा वेश , आभूषण , ड्राई फ्रूट्स , वगैरह ही ले जावे । पण आज कल गयारह थाल सजाने ले जावे और बढ़ चढ़ ने दिखावौ करे। वधू पक्ष में सब इण पडला ने देखे और इणमें सूं थोड़ी थोड़ी चीजों सकुन रे तौर रे रूप में राख ने बाकी थाल पाछा देदेवे। नारियल सागे रूपया दूना करने देवे। आ एक सकुन री परम्परा है ।
8 - सासू द्वारा बींदराजा रो नाक खींचणौ - सामेळा री टैम सासू द्वारा बींदराजा ने टीकतो टैम नाक खींचवा री परम्परा है । इणसूं ओ ठा पड़ जावे के बींदराजा रौ स्वभाव कैड़ौ है । नरम है या गरम। इणरै सागे ई सास आ कामना करे के जमाई राजा रौ नाक ( इज्जत ) रौ मान बढ़तो रैवे।
9- बारात रवाना री टैम मां द्वारा दुल्हा ने स्तनपान करावणौ - बारात रवाना वै जद् मां उणरा बेटा बींदराजा ने स्तनपान कराय ने रवाना करें । इणरौ अर्थ ओ है के बेटा मारे दूध री लाज राखजै। थन्नै दूध पिलाय ने घणौं दोरो मोटो करियो। बहु आयो रे पछै थूं इण दूध ने भूलजे मती । थे बेटा और बहू रो फ़र्ज़ निभाईजौ। फलजो, फूलजो पण मां बाप ने मती भूलजो।
10 - तोरण मारणौ - बींदराजा जद् परणीजा ने आवै तो सामेळा रै पछै तोरण मारणा री रश्म होवे ।तोरण सूं सम्बंधित दो तीन दंतकथा प्रचलित है । एक कथा रै अनुसार एक राजा रै एक तोतो पाळियोड़ौ हो। राजौ हमेशा केवतो के मारी राजकुमारी रौ ब्याव तोता रे संग कराऊंगा। पण राजकुमारी रे ब्याव रै टैम तोता ने भूलगो। तोता ने रीस आइगी। वो जानियो ने टोंचण लागो। जद् बींदराजौ एक छड़ी लेने तोता ने मारियो। जद् तोतो बौल्यो के मन्नै मारो मती । मन्नै वरदान दो के जद् भी कोई लड़की रौ ब्याव वे तो लकड़ी रे तोता रौ तोरण बणाय ने मन्नै याद करोला ।
एक दूजी दंतकथा है के जूनी टैम में तोरण नाम रौ एक राक्षस थो। वो राक्षस सुओ (तोतो) बण ने वधू पक्ष रे घर री पौळ माथे बैठ जावतो। इण पौळ रै नीचे सूं जद बींदराजौ निकलतो जद् वो सुओ उण बींदराजा री काया में प्रवेश कर जातो। और मौज करतो । एक दिन कोई ज्ञानी राजकुमार दुल्हों बणने ससुराल री पौळ रे नीचे सूं निकळन लागो तो उणरौ ध्यान उण तोता माथे पड़गो। वो तोता ने औळख लियौ के ओ एक राक्षस है । राजकुमार उण तोता ने मारण सारू एक हाथ में तलवार और उणरै सागे एक बोरड़ी री छड़ी लेयने उण तोरण नाम रा राक्षस ने मार दियौ। बाद में वो तोरण राक्षस ओ वचन लियौ के आईन्दा सूं मैं कदेई दुल्हा रा शरीर में प्रवेश कोनी करूंला, पण मारै प्रतीक रे रूप में तोरण बणाय ने उण माथे लकड़ी रा तोता बणाय ने बींदराजौ तोरण मारवा री परम्परा ने राखौला तो मैं बींदराजा री काया में प्रवेश कोनी करूंला। जद् सूं आ परंपरा लागू है।
आजकल तोरण रो रूप बदलगो। बाजार में रेडिमेड तोरण मिले। उण तोरण माथे गजानंद जी रो फोटो लगावे और उणने तलवार और छड़ी सूं वांदे। ओ गलत है सा। गजानंद जी ने तलवार और छड़ी सूं वांदणा सूं अर्थ रौ अनर्थ वे जावे, ओ अशुभ है। तोरण लकड़ी रो वैणौ चहिजे और उणरै माथे लकड़ी री चिड़खलिया और तोता बणियोड़ा वैणा चहिजे।
इण परंपरा नै तोरण मारणौ या तोरण रे टीचियो देवणौ कैवे।
11--ढोल टीकणौ - ब्याव रा जद् सगळा कार्यक्रम सफल और शांतिपूर्ण निपट जावे तो पछै ढ़ोल ने टीक ने घर में आगला शुभ कार्य सारू विदाई देवे। ढ़ोल माथे कुंकुम सूं सूरज चांद मांडे और लाडो कोडो सूं ढ़ोल ने विदाई देवे।
12- बेटी विदाई री टैम चावल और पैसे घर री तरफ़ उछालना - विवाह के पश्चात जब बेटी विदा होवे तो वह पिता की दहलीज लांघती टैम बिना पीछे पलटे अपने पीछे की और चावल और पैसे उछाल ने विदा होवे , इणरौ अर्थ ओ है के वह लक्ष्मी स्वरुप अपने साथ मायके का सौभाग्य लेकर नहीं जाए और मायके में हमेशा अन्न और धन से भरिया रैवे।
आजकल यह रस्म घर री बजाय फाइव स्टार होटल रिसोर्ट और महंगे होटलों में होवे । इण वास्ते सौभाग्य घर री बजाय होटल और रिसॉर्ट पर ज्यादा बरस रयी है।
14- कांकण डोरा बांधणा और खोलना - कांकण डोरा में मौऴी रा डोरा में एक लोहा री रिंग , एक लाख (लक्षा ) रौ टुकड़ों , एक कोड़ी बांधियोड़ा रैवै । शादी सूं पैला दुल्हा दुल्हन रे हाथ और पग में बांध्या करे। शादी सम्पन्न वियौ पछै खोल दीया जावे। इणरौ अर्थ ओ है के जिंदगी रा सफर में लोहा ज्यूं मजबूत रिया तो सफ़र लाखों रौ होवेला और अगर मजबूत और खरा नहीं रिया तो ओ सफ़र एक कोड़ी रौ वे जावेला । अतः ध्यान राखजौ ।
बात को गहराई से समझवा री बहुत अधिक आवश्यकता है अब भी समय है संभल जावै तो ठीक है आधुनिक बणौ लेकिन अपनी परंपराओं ने बचाने राखौ।
इण भांत जो भी विवाह री परंपरा है , उणरै सागै बहुत मोटी सीख है ।
@ कवि दलपतसिंह रूपावास
शिवनगर , मंडियारोड , पाली